लाइकेन क्या है? वर्गीकरण, प्राप्ति स्थान,प्रजनन…


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लाइकेन क्या है?

लाइकेन क्या है? : प्रकृति में कुछ ऐसे उदहारण भी मिलते हैं जिनमें दो अलग प्रकार के पौधे परस्पर एक-दुसरे के साथ घनिष्ट संबंध बनाकर रखते हैं| एक पौधा दुसरे पौधे को अर्थात् दोनों पौधे एक दुसरे को कुछ न कुछ लाभ पहुँचाते हैं| ऐसे ही पौधें के समूह का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण लाइकेन हैं| बोल्ड के अनुशार लाइकेन शैवाल तथा कवक के पौधों के घने संबंध का समूह होता हैं| इसीलिए इसे माइक्रोफाइकोफाइटा नाम दिया गया हैं दोनों एक दुसरे से इस प्रकार मिल रहे हैं कि दोनों का समूह एक पौधे के रूप में दिखाई देता हैं| इस संबंध को सह-जीवन कहा जाता है|

वर्गीकरण :

चूँकि यह दो अलग-अलग वर्ग के पौधें का समूह होता हैं इसीलिए लाइकेन के वर्गीकरण के बारे में हमेशा मतभेद रहा है| इसलिए प्राकृतिक वर्गीकरण में इसकी स्थिति ठीक नहीं बैठती|

बैसी तथा मार्टिन के अनुशार इसे कवक के साथ समूह यूमाइकोफाइटा में रखा जाना चाहिए| स्मिथ ने इसे अलग समूह लाइकेन में ही रखा| बोल्ड ने इसे नया समूह माइक्रोफाइकोफाइटा नाम दिया| इस नाम से पौधे की रचना का सही ज्ञान हो जाता है कि इसकी रचना में शैवाल तथा कवक दोनों सम्मिलित हैं|

प्राप्ति स्थान :

लाइकेन्स ऐसे स्थानों में पर अधिकता से मिलते हैं जहाँ नमी बहिउट अधिक मात्रा में पायी जाती हैं तथा तापक्रम कम होता है| ये अधिकतर पेड़ों की छाल, नम भूमि फड़ी के खम्बों तथा चट्टानों आदि पर उगते हुए पाए जाते हैं| कुछ लाइकेन्स ऐसी परिस्थितियों में भी पाए जाते हैं जिनमे अन्य प्रकार के पौधे नहीं पनप सकते हैं| कुछ अधिक शुष्कपन या बहुत कम तापक्रम सह सकते हैं, जैसे ध्रुव प्रदेश| कुछ जातियाँ जैसे कलेडोनिया रेमडियर के द्वारा खायी जाती है| इसलिए इसे रेनडियर माॅस भी कहते हैं| इसकी pure संसार में लगभग 400 जातियाँ तथा 1600 उपजातियाँ फैली हुई है|

यह आवास के आधार पर दो प्रकार के होते हैं –

  1. Saxicols – यह दो पत्थर पर मिलते हैं और भूमि के कटाव के लिए उत्तरदायी हैं|
  2. Corticols – यह वृक्षो की छाल में उगते हैं |

लाइकेन की प्रकृति :

लाइकेन को उसके बाह्य आकारिकी के आधार पर निम्न तीन भागो में बात गया है :

  1. क्रस्ट्रोज लाइकेन : इसका सूकाय चपता होता है और जो आधार के साथ पूरी तरह से चिपका रहता है| यह चट्टानों तथा पौधों की चल पर पाया जता हैं| अधिकांशतः क्रस्ट्रोज लाइकेन का सूकाय चमड़े जैसा होता है| उदहारण : ग्रेफिस, वेरुकेरिया, हिमेटोमा|
  2. फोलीयोज लाइकेन : इनका सूकाय पत्ती के समान प्रतीत होता है| सूकाय नीचे आधार से राइजिन्स नमक रचनाओं से जुदा रहता है| ये रचनायें वास्तव में कवक तंतु के ही बने होते हैं| उदहारण : गायरोफोरा, पेल्टीजिरा (Peltigera), परमीलिया (Permelia) इत्यादी|
  3. फ्रूटीकोज लाइकेन : इनका सूकाय बड़ा व शाखायुक्त होता है| इसकी कुछ शाखाएँ सीधी होती हैं तथा कुछ शाखाएँ लटकी हुई दिखाई देती हैं| उदहारण : क्लेडोनिया, इवरनिया, असनिया|
lichen ki prakriti
लाइकेन क्या है?

संरचना : लाइकेन की आंतरिक रचना के लिए उसकी अनुप्रस्थ काट काटनी पड़ती है| इसकी आंतरिक रचना जटिल होती है| कोन्सोरशियम चारों ओर से एक बाहरी सहत से घिरा रहता है बाहरी सहत के बाद कॉर्टेक्स का भाग होता है| यह भाग कवक सूत्रों का बन होता है| कवक सूत्र उलझे गुच्छे के रूप में होते हैं| मध्य का भाग Medulla कहलाता है| यह भाग भी कवक सूत्रों का बना होता है मज्जा के उपर तक कॉर्टेक्स में नीचे भाग में शैवाल की कोशिकाएँ होती है| इस पत्ते को गोनीडियल पर्त कहते हैं|

लाइकेन के पूरे सूकाय में यदि शैवाल की कोशिकाएँ बिखरी रहती हैं तो लाइकेन होमीयोमीरम कहलाता है और यदि शैवाल की कोशिकाएँ निश्चित पर्त में होती है तो सूकाय हेटरोमीरम कहलाता है|

पोषाहार : लाइकेन में वृद्धि बहुत धीरे-धीरे होती है इसलिए इन्हें पोषण की आवश्यकता कम मात्रा में होती है| ये बहुत अधिक समय तक बिना पानी या भोजन के रह सकते हैं| इसमें पानी की अवशोषण के लिए विशेष प्रकार के अंग राइजिन्स होते हैं| कार्बोनिक भोजन शैवाल से प्राप्त होता रहता है जो की शैवाल की कोशिकाओं द्वारा विसरित होकर आता है|

प्रजनन : लाइकेन में प्रजनन निम्न प्रकार से होता है|

lichen me prajanan
लाइकेन क्या है?

वर्धी प्रजनन : वर्धी प्रजनन विखंडन के द्वारा तो होता ही है इसके साथ ही वर्धी प्रजनन के लिए कुछ विशेष रचनाएँ बनती है जो निम्न हैं :

  • सोरोडिया : ये गोलाकार रचनाएँ होती हैं जिनमें एक या एक से अधिक शैवाल कोशिकाएँ होती हैं| इनमें शैवाल तयह कवक दोनों होते हैं| ये हवा से वितरित और फिर अंकुरित होकर नये लाइकेन को जन्म देती है|
  • आइजीडिया : ये वृत्त वाले उभार जैसी रचनाएँ होती हैं जिनमें शैवाल तथा कवक के भाग होते हैं|
  • सिफेलोडिया : ये सूकाय के ऊपर एक विशेष प्रकार की रचनाएँ होती हैं जो गहरे रंग की होती हैं| इनमे सामान्य प्रकार की कवक तथा विभिन्न प्रकार की शैवाल होती हैं|
  • सिफेली : ये कुछ लाइकेन की निचली सतह पर गोलाकार गुहाएँ होती हैं| ये मज्जा में खुलती हैं तथा मुख्या रूप से वायु के आदान-प्रदान के लिए होती हैं|

अलिंगी प्रजनन : यह बहुत छोटे आकर के गहरे रंग के बीजाणुओं द्वारा होता हैं| ये बीजाणु फ्लाक्स के आकर के पिक्नीडिया में विकसित होते हैं| ये बीजाणु अंकुरित होकर अपने चरों ओर कवक सूत्र की शाखाएँ बनाते हैं| ये शाखाएँ जब शैवाल के सम्पर्क में आती हैं तो लाइकेन शारीर का विकास हो जाता है|

लिंगी प्रजनन : लाइकेन में लिंगी प्रजनन केवल कवक के भाग में होता हैं| मादा अंग कार्पोगोनियम एक मुड़ी हुई बहुकोशिकीय रचना होती है जिसमें एक बहुकोशिकीय ट्राइकोगाइन होती है| नर अंग स्पर्मोगोनियम (Spermogonium) एक फ्लाक्स के आकर की रचनाएँ होती हैं| जिसमें बहुत से स्पर्मेशिया में बदलते हैं जो ओस्टीयोल (Ostiole) के द्वारा बहार निकलते हैं तथा जब ट्राइकोगाइन (Trichogyne) के सम्पर्क में आते हैं, तो दोनों के मध्य की भित्ति विघटित हो जाती हैं और निषेचन (Fertilization) की क्रिया हो जाती है| इसके फलस्वरूप एस्कोजीनस तन्तु (Ascogenous Hyphae) का निर्माण करता है जो एस्कोमाइसिटिज कवक (Ascomycetes Fungi) के समान पेरीथेसियम तथा एपोथेसियम बना देते हैं|

आर्थिक महत्त्व : लाइकेन का आर्थिक महत्त्व लाभ की दृष्टी से बहुत अधिक टी नहीं है लेकिन कुछ लाइकेन भोजन तथा दवाइयों के काम आते हैं| इनका आर्थिक महत्त्व निम्न है :

  • भोजन (Food) : ध्रुव प्रदेशो में क्लेडोनिया रेन्जीफरीना (Cladonia Rangiferina) नामक लाइकेन रेन्डियर नामक पशु के लिए भोजन के उपयोग में आता हैं| अम्बिलीकेरिया (Umbilicaria) लेकेनोरा (Lecanora) तथा कुछ अन्य मनुष्य के द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण किये जाते हैं| यही नहीं बहुत से कीटों के लार्वा (Larvae) के लिए भी लाइकेन भोजन प्राप्त करते हैं|
  • दवाइयाँ ( Medicines) : क्लेडोनिया (Clodania) तथा सिट्रेरिया (Cetraria) की जातियाँ बुखार में उपयोग में लाई जाती है| पल्टीजिरा (Peltigera) का हाइड्रोफीबिया रोग (Hydrophobia) के लिए तथा लोबेरिया पल्मोनेरिया (Lobaria Plamoneria) का फेफड़ों के रोगों के लिए उपयोग किया जाता हैं|
  • रंजक द्रव्य (Dyes) : लाइकेन की की विभिन्न जातियों से विभिन्न प्रकार के रंग बनाये जाते हैं| रोसेला टिंक्टोरिया से पीले रंग प्राप्त होता है|
  • सुगन्ध (Perumes) : लोबेरिया पल्मोनेरिया (Lobaria Plamoneria) तथा कुछ अन्य लाइकेन सुगन्ध के रूप में प्रयोग किये जाते हैं|
  • खनिज (Minerals) : लेकेनोरा एस्कुलेन्टा बहुत अधिक मात्रा में कैल्सियम ऑक्जलेट देता है|
aarthik mahattaw
लाइकेन क्या है?
इस पोस्ट में हमने लाइकेन क्या है? के बारे में लिखा हैं उम्मीद है आप सभी को काफी अच्छा लगा होगा|

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