Sanakashti Chaturthi Vrat Katha PDF: इस पोस्ट के माध्यम से हम आज आपके साथ सम्पूर्ण संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा को PDF के फॉर्मेट में शेयर करेंगे, जिसे आप निशुल्क डाउनलोड करके अपने फोन या कंप्यूटर के माध्यम से ही पढ़ सकते है|
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Sanakashti Chaturthi Vrat Katha PDF
PDF Name | संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा PDF |
Language | Hindi |
No. of Pages | 5 |
PDF Size | 0.3 MB |
Category | Religion & Spirituality |
Quality | Excellent |
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा PDF Summery
संकष्टी चतुर्थी व्रत का सम्बन्ध भगवान् गणेश से है| अगर आप भी संकष्टी चतुर्थी व्रत कर रहे है तो आपको इसके व्रत कथा का पथ अवश्य करना चाहिए| ऐसा माना जाता है कि व्रत करने याले स्त्री या पुरुष को व्रत रखने के लिए उसके व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए|
संकष्टी चतुर्थी व्रत भारत के सभी राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन भारत के महाराष्ट्र राज्य में यह व्रत ज्यादा प्रसिद्ध है| इस व्रत के पीछे की कहानी को ही इसका व्रत कथा कहा जाता है|
दरअसल संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा के माध्यम से हमलोग यह जान पते है कि संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने का महत्व क्या है| यह सनातन धर्म का एक प्रसिद्ध त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है|
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
एक समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह की तैयारियां चल रही थीं, इसमें सभी देवताओं को निमंत्रित किया गया लेकिन विघ्नहर्ता गणेश जी को निमंत्रण नहीं भेजा गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह में आए लेकिन गणेश जी उपस्थित नहीं थे, ऐसा देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा। उन्होंने कहा कि भगवान शिव और पार्वती को निमंत्रण भेजा है, गणेश अपने माता-पिता के साथ आना चाहें तो आ सकते हैं। हालांकि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि वे नहीं आएं तो अच्छा है। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता। इस दौरान किसी देवता ने कहा कि गणेश जी अगर आएं तो उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दी जा सकती है। उनसे कहा जा सकता है कि आप चूहे पर धीरे-धीरे जाएंगे तो बाराज आगे चली जाएगी और आप पीछे रह जाएंगे, ऐसे में आप घर की देखरेख करें। योजना के अनुसार, विष्णु जी के निमंत्रण पर गणेश जी वहां उपस्थित हो गए। उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दे दी गई। बारात घर से निकल गई और गणेश जी दरवाजे पर ही बैठे थे, यह देखकर नारद जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि विष्णु भगवान ने उनका अपमान किया है। तब नारद जी ने गणेश जी को एक सुझाव दिया। गणपति ने सुझाव के तहत अपने चूहों की सेना बारात के आगे भेज दी, जिसने पूरे रास्ते खोद दिए। इसके फलस्वरूप देवताओं के रथों के पहिए रास्तों में ही फंस गए। बारात आगे नहीं जा पा रही थी। किसी के समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, तब नारद जी ने गणेश जी को बुलाने का उपाय दिया ताकि देवताओं के विघ्न दूर हो जाएं। भगवान शिव के आदेश पर नंदी गजानन को लेकर आए। देवताओं ने गणेश जी का पूजन किया, तब जाकर रथ के पहिए गड्ढों से निकल तो गए लेकिन कई पहिए टूट गए थे। उस समय पास में ही एक लोहार काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। उसने अपना काम शुरू करने से पहले गणेश जी का मन ही मन स्मरण किया और देखते ही देखते सभी रथों के पहियों को ठीक कर दिया। उसने देवताओं से कहा कि लगता है आप सभी ने शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा नहीं की है, तभी ऐसा संकट आया है। आप सब गणेश जी का ध्यान कर आगे जाएं, आपके सारे काम हो जाएंगे। देवताओं ने गणेश जी की जय जयकार की और बारात अपने गंतव्य तक सकुशल पहुंच गई। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह संपन्न हो गया। |
Download संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा PDF
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