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संत रविदास जी के बहुत सारे दोहे है, इन्हें दोहे हमे भगवान् के प्रति आकर्षित करते है| संत रविदास जी के अनुसार किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति से उंच-नीच का भाव नहीं रखना चाहिए और ना ही हिंसा करना चाहिए, बल्कि सभी इंसान को एक दुसरे के साथ मिलजुलकर और प्रेमभाव से रहना चाहिए|
संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित PDF
PDF Name | संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित PDF |
Language | Hindi |
No. of Pages | 13 |
PDF Size | 1.05 MB |
Category | Hindi |
Quality | Excellent |
संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित PDF Summery
संत रविदास जी अपने दोहे के माध्यम से हमलोग को नेकी के रस्ते में चलने के लिए प्रोत्साहित करते है और प्रेमभाव से रहने का सलाह देते है|
संत रविदास जी की माने से मनुष्य के बीच में किसी तरह का आपकी द्वेष कभी होना ही नहीं चाहिए अपितु सबको मिलजुलकर एक ही समाज में रहना चाहिए|
दुसरे का सहायता को अपना परम कर्तव्य मानना चाहिए| अगर अपने समाज में कोई व्यक्ति किसी समस्या से झुझ रहा है तो उसका सहायता अवश्य करना चाहिए|
रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम। सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।। अर्थ – रैदास जी कहते है कि जिसके हर्दय मे रात दिन राम समाये रहते है, ऐसा भक्त राम के समान है, उस पर न तो क्रोध का असर होता है और न ही काम भावना उस पर हावी हो सकती है। |
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस। ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।। अर्थ – हरी के समान बहुमूल्य हीरे को छोड़ कर अन्य की आशा करने वाले अवश्य ही नरक जायेगें। यानि प्रभु भक्ति को छोड़ कर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है। |
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास । प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास ।। अर्थ – जिस रविदास को देखने से घर्णा होती थी, जिसका नरक कुंद मे वास था, ऐसे रविदास जी का प्रेम भक्ति ने कल्याण कर दिया है ओंर वह एक मनुष्य के रूप मै प्रकट हो गए है। |
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच अर्थ – इस दोहे में रविदासजी के कहने का तात्पर्य है की किसी जाति में जन्म के कारण व्यक्ति नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को भिन्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्म सदैव ऊंचें होने चाहिए। |
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच। नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच। अर्थ – रविदास जी कहते हैं कि मात्र जन्म के कारण कोई नीच नहीं बन जाता हैं परन्तु मनुष्य को वास्तव में नीच केवल उसके कर्म बनाते हैं। |
“मन चंगा तो कठौती में गंगा” अर्थ – यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते है। |
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।। अर्थ – इस दोहे के माध्यम से संत रविदास जी कहना चाहते हैं की किसी की सिर्फ इसलिए पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर है। यदि कोई व्यक्ति ऊँचें पद पर तो है पर उसमे उस पद के योग्य गुण नहीं है तो उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए। इसके अतरिक्त कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है परन्तु उसमें पूज्जनीय गुण हैं तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए। |
मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊं सहज स्वरूप।। अर्थ – इस दोहे की पंक्तियों के माध्यम से स्वामी रविदास जी कहना चाहते हैं की जिसका मन निर्मल होता है भगवन उसी में वास करते हैं। जिस व्यक्ति के मन में कोई बैर भाव नहीं है, किसी प्रकार का लालच नहीं है, किसी से कोई द्वेष नहीं है तो उसका मन भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है। ऐसे पवित्र विचारों वाले मन में प्रभु सदैव निवास करते हैं। |
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस। कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।। अर्थ – रविदास जी का कहना है कि मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म करना रहना चाहिए, उससे मिलने वाले फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो उसका फल मिलाना भी हमारा सौभाग्य। |
Download संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित PDF
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आज के इस पोस्ट के माध्यम से हमने आपके साथ संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित PDF शेयर किया, उम्मीद है कि इस पीडीऍफ़ में दिया गया सभी दोहा आपको अवश्य पसंद आएगा| अगर पोस्ट पसंद आया तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर करें|
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