[PDF] पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF


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Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF: एकादशी का पर्व भारत में बहुत सारे क्षेत्रों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है एकादशी का पर्व भगवान विष्णु को समर्पित होता है आने वाले कुछ समय में श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाने वाला है|

अगर आप भी श्रावण पुत्रदा एकादशी के व्रत कथा को  पीडीएफ में डाउनलोड करके अपने फोन या कंप्यूटर के माध्यम से पाठ करना चाहते हैं तो आज पहले आपके लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगा|

Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF

PDF Nameपुत्रदा एकादशी व्रत कथा PDF
LanguageHindi
No. of Pages8
PDF Size0.68 MB
CategoryReligious
QualityExcellent

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा PDF Summary

Putrada Ekadashi Vrat Katha

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत जैसे कि आपको नाम से यह मालूम होता है पुत्रदा एकादशी व्रत संतान की प्राप्ति को दर्शाता है| आपको अगर मैं संक्षेप में बताऊं तो पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है, वैसे दंपत्ति जिनका  विवाह हुए कई वर्ष हो चुके हैं परंतु उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई है|

पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए सनातन धर्म ऐसा माना जाता है जो भी दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होने का आशा बहुत ज्यादा हो जाता है और भगवान प्रश्न प्रसन्न होगा ऐसे दंपत्ति को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद जरूर देते हैं|

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत मुख्य रूप से दंपत्ति यह परिवार की महिलाएं करती है इस व्रत में श्रद्धा और भक्ति रखने वाले को फल अवश्य प्राप्त होता है इसीलिए अगर आप पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का सोच रहे तो इससे संपूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ ऐसा करने से आपको लाभ होगा अगर आप किसी भी भगवान की पूजा सच्चे मन से नहीं करते तो आपको कोई फल प्राप्त नहीं होता है इसीलिए भगवान की पूजा हमेशा सच्चे मन से ही करनी चाहिए|

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था, कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं।

पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।
वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा: हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है?

राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे।

एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।

सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले: हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है।

उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएँ।

यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था।

एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।

राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।

लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी।

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया।

इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ।

इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

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